राधे की सोच सोच तुझसे झगड़ते होंगे .
तुझे निठुर और पत्थर कहते होंगे ,
मथुरा के वैभबों में तू गोकुल को भूल गया ,
ये इल्जाम देते होंगे .
किसने सोचा दुनिया के आँसु पोछने के लिए ,
तुने अपनी आँखों में सारे मोती पिरो लिए .
कितनी बार मैया और बाबा के लिए मन अकुलाया तेरा,
किसने हिसाब रक्खा,
कितनी बार तेरी आँखें गोप सखाओं को धुंड-धुंड ब्याकुल हो उठी .
कितनी बार अपने गाय-बछड़ो को याद कर कर तू बिलख उठा ,
कितनी कितनी बार ब्रज के प्रान्तर,पहाड़, गलियाँ और युमना,
सपनों में आकर तुझे जगाते रहें.
एक ख़ामोशी के अलावा किसने देखा?
एक तेरी बाँसुरी के सिवा किसने महसूस किया ?
राधा को तू कब भुला , तू तो हर पल उसके साथ था ,
हा भौगोलिक दुरी थी , पर मन से कब तू जुदा रहा .
तेरी मुरली की हर एक तान तो राधा को ही पुकारती रही ,
रुक्मिणी सत्यभामा में भी तुने राधा का ही स्मरण किया .
हर दुःख को सहते हुए तुने हस हस हर कर्तब्य को निभाया .
हे योगेश्वर, तूने प्रेम का कुछ ऐसा योग लिया,
लोग तो प्रेम पर दुनिया लुटा देतें हैं ,
तुने तो दुनिया के प्रेम में अपने आप को ही लुटा डाला .