Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare...
Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare.........................

Friday, October 5, 2012

अनमोल खजाना - मीराबाई - हरि बिन ना सरै री माई

 हरि बिन ना सरै री माई।
मेरा प्राण निकस्या जात, हरी बिन ना सरै माई।
मीन दादुर बसत जल में, जल से उपजाई॥
तनक जल से बाहर कीना तुरत मर जाई।
कान लकरी बन परी काठ धुन खाई।
ले अगन प्रभु डार आये भसम हो जाई॥
बन बन ढूंढत मैं फिरी माई सुधि नहिं पाई।
एक बेर दरसण दीजे सब कसर मिटि जाई॥
पात ज्यों पीली पड़ी अरु बिपत तन छाई।
दासि मीरा लाल गिरधर मिल्या सुख छाई

Friday, July 20, 2012

मिलन : कान्हा के नाम चिट्ठी: चंद्रानी (पिंकी )


कान्हा, मो से मिलन को आयों,
सावन पंचमी की रात .
मनोहर मूरत , सावली सूरत,
मिटा गयों  संताप . 
 हिव्ड़े से लिपट लिपट कर ,
बोल्या मीठी वाणी  .
छल छल  नीर बहें नैनन से,
रोक्या  डगर  म्हारी .
अबहू  दरद कोई  तन से न लाग्ये,
मिट गयों  भय अरु त्रास. 
चांदन से धुल रही रैना ,
बुझी नैनन की प्यास . 

श्यामरंग, रंग गयी मैं  तो ,
जग से मोहे क्या काज.
अब काहूँ का ध्यान  धरूँ,
जो मिल गयें महाराज .



अनमोल खजाना :किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत: सूरदासजी

 
 किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत ।
मनिमय कनक नंद कै आँगन, बिंब पकरिबैं धावत ॥

कबहुँ निरखि हरि आपु छाहँ कौं, कर सौं पकरन चाहत ।
किलकि हँसत राजत द्वै दतियाँ, पुनि-पुनि तिहिं अवगाहत ॥
कनक-भूमि पद कर-पग-छाया, यह उपमा इक राजति ।
करि-करि प्रतिपद प्रति मनि बसुधा, कमल बैठकी साजति ॥
बाल-दसा-सुख निरखि जसोदा, पुनि-पुनि नंद बुलावति ।
अँचरा तर लै ढाँकि, सूर के प्रभु कौं दूध पियावति ॥

भावार्थ :-- कन्हाई किलकारी मारता घुटनों चलता आ रहा है । श्रीनन्द जी के मणिमय आँगन में वह अपना प्रतिबिम्ब पकड़ने दौड़ रहा है । श्याम कभी अपने प्रतिबिम्ब को देखकर उसे हाथ से पकड़ना चाहता है । किलकारी मारकर हँसते समय उसकी दोनों दँतुलियाँ बहुत शोभा देती हैं, वह बार-बार उसी(प्रतिबिम्ब) को पकड़ना चाहता है । स्वर्णभूमि पर हाथ और चरणों की छाया ऐसी पड़ती है कि यह एक उपमा (उसके लिये) शोभा देनेवाली है कि मानो पृथ्वी (मोहन के) प्रत्येक पद पर प्रत्येक मणि में कमल प्रकट करके उसके लिये (बैठने को) आसन सजाती है । बालविनोद के आनन्द को देखकर माता यशोदा बार-बार श्रीनन्द जी को वहाँ (वह आनन्द देखने के लिये)बुलाती हैं । सूरदास के स्वामी को (मैया) अञ्चल के नीचे लेकर ढक कर दूध पिलाती हैं ।

Saturday, July 7, 2012




कित गया मोरा गोपाल कृष्ण ,
ढूँढ रही माँ योशोदा .
कित गया मोरा नंदलाला,
पूँछ रही माँ यशोदा.
दही की मटकी, माखन की मटकी,
तोड़े फोड़े, ग्यालिनो की बस्ती .
माखन चुराने में जिसकी मस्ती .
वह चोर छुप गया कहाँ .
कित गया मोरा गोपाल कृष्ण ,
ढूँढ रही माँ योशोदा .
डोर से बाँधे, बंधन रहे ना,
डोर नही जैसे फुलों का गहना .
उस अबिनाशी को बांध सके ना,
जो ना वह स्वयम बंधने आये .
कित गया मोरा गोपाल कृष्ण ,
हाथ में ब्रह्माण्ड लड्डू ,
यमुना पायल भयी चरणों में .
सोचे मैया बालक भेश में ,
कौन जादूगर खेले हाय .
कित गया मोरा गोपाल कृष्ण ,
ढूँढ रही माँ योशोदा .
कित गया मोरा नंदलाला,
पूँछ रही माँ यशोदा.

Thursday, July 5, 2012

कान्हा के नाम चिठ्ठी: चंद्रानी (पिंकी)

कान्हा तुम्हारे नाम की चिट्टी लिखने पर ,मेरे मन को एक अजीब सी शांति मिलती हैं. तुम्हे पता हैं, दिन रात सोचती हूँ , तुम पर सब कुछ न्योछावर कर दू. जानती हूँ की  कहना आसान हैं, करना मुस्किल, पर तुम चाहो तो नामुमकिन भी मुमकिन हो जायें...प्रेम में बड़ी शक्ति होती हैं... आज उसी प्रेम की एक कहानी को , तकनिकी सहायता  थोड़ा सजाने-सवारने  की कौसिश करते  हुए , तुम्हारे चरणों में अर्पण करती हूँ.. 

अनमोल खजाना : मीराबाई : मीरा मगन भई हरि के गुण गाय

मीरा मगन भई हरि के गुण गाय॥
सांप पिटारा राणा भेज्या, मीरा हाथ दिया जाय।
न्हाय धोय जब देखन लागी, सालिगराम गई पाय॥
जहरका प्याला राणा भेज्या, इम्रत दिया बनाय।
न्हाय धोय जब पीवन लागी, हो गई अमर अंचाय॥
सूली सेज राणा ने भेजी, दीज्यो मीरा सुवाय।
सांझ भई मीरा सोवण लागी, मानो फूल बिछाय॥
मीरा के प्रभु सदा सहाई, राखे बिघन हटाय।
भजन भाव में मस्त डोलती, गिरधर पर बलि जाय॥

Sunday, July 1, 2012

अनमोल खजाना : सूरदास जी : भावी काहू सौं न टरै।

 

आनि सँजोग परै , भावी काहू सौं न टरै।
कहँ वह राहु, कहाँ वे रबि-ससि, आनि सँजोग परै॥
मुनि वसिष्ट पंडित अति ज्ञानी, रचि-पचि लगन धरै।
तात-मरन, सिय हरन, राम बन बपु धरि बिपति भरै॥
रावन जीति कोटि तैंतीसा, त्रिभुवन-राज करै।
मृत्युहि बाँधि कूप मैं राखै, भावी बस सो मरै॥
अरजुन के हरि हुते सारथी, सोऊ बन निकरै।
द्रुपद-सुता कौ राजसभा,दुस्सासन चीर हरै॥
हरीचंद-सौ को जग दाता, सो घर नीच भरै।
जो गृह छाँडि़ देस बहु धावै, तऊ वह संग फिरै॥
भावी कैं बस तीन लोक हैं, सुर नर देह धरै।
सूरदास प्रभु रची सु हैहै, को करि सोच मरै॥

Wednesday, June 27, 2012

कान्हा के नाम चिट्ठी - रखियो प्रीत की लाज- चंद्रानी पुरकायस्थ (पिंकी )

कान्हा रे , रखियो प्रीत की लाज ,
तन मन धन सब हारे तुम पर,
तोहरे  दरस की आस .
रखियो प्रीत की लाज.
प्रीत अमृत बृक्ष रोपा ,
अँसुवन जल से नित-नित  सींचा.
कलुष का तेज डराता जायें,
तोहरे छाव की प्यास .
रखियो प्रीत की लाज.
तू हैं काया ,में तेरी छाया;
रोम रोम में तू ही समाया.
पल- छिन अब तो युग सी लागे.
मिलन को तड़पे प्राण.
रखियो प्रीत की लाज...........

Wednesday, May 23, 2012

अनमोल खजाना -मीरा भजन- बिना प्रभु कुण बांचे पाती




कुण बांचे पाती, बिना प्रभु कुण बांचे पाती।
कागद ले ऊधोजी आयो, कहां रह्या साथी।
आवत जावत पांव घिस्या रे (वाला) अंखिया भई राती॥
कागद ले राधा वांचण बैठी, (वाला) भर आई छाती।
नैण नीरज में अम्ब बहे रे (बाला) गंगा बहि जाती॥
पाना ज्यूं पीली पड़ी रे (वाला) धान नहीं खाती।
हरि बिन जिवणो यूं जलै रे (वाला) ज्यूं दीपक संग बाती॥
मने भरोसो रामको रे (वाला) डूब तिर्‌यो हाथी।
दासि मीरा लाल गिरधर, सांकडारो साथी॥ 

शब्दार्थ :- कुण =कौन। पाती = चिट्ठी। साथी =सखा, श्रीकृष्ण से आशय है। घिस्या = घिस गये। राती = रोते-रोते लाल हो गई। अम्ब = पानी। म्हने =मुझे सांकडारो =संकट में अपने भक्तों का सहायक।

Wednesday, May 9, 2012

कान्हा के नाम चिठ्ठी- चंद्रानी पुरकायस्थ






चल ले चल मोहे उस पार,
तुझ  में ही मेरो संसार .
तू पार लगा, मेरी नाव फसी,
खिवैयाँ  मेरे मोहन श्रीहरी .
तोरे बिन अब रहा न जाएँ ,
पल भर को चैन न आयें.
तोरे चरणों से लिपटी रहूँ,
पायल बन छन  छन छनकती रहूँ .
माधब अब तो दरस दिखादे
जन्मों की प्यास बुझादे  .

Monday, May 7, 2012

कान्हा के नाम चिठ्ठी - तेरा प्रेम -चंद्रानी पुरकायस्थ (पिंकी)

 मैं अकेली थी , अकेली हूँ  और सायद अकेली ही रहूंगी।
भीड़ में भी अकेली ।।
हर अपना, अपने होने का एहसास दिला कर खो जाता है. 
मैं सुनी गलियारे में झांकती , सोचती कोई किसी का अपना होकर भी ,
अपना नही ???
तभी तू  कानों  में मेरे हलके से कह जाता ,
हर पल , हर कदम  मैं साथ हूँ तेरे ।
मैं मोर पंख से छन  छन आती किरणों में ,
ढूंढ़ लेती  तुझे।
तू अपनी आँखों कि भाषा से 
हर बात कह जाता ।
मैं अँधेरे से डर जाती ,
तू बाति लेकर राह दिखाता.
हाँ , पता हैं मुझे ,
हर  पल तू साथ था, साथ है, साथ रहेगा।
प्रेम क्या है तुने ही तो सिखलाया ,
मैं संसार भर प्रेम  ढूँढती रही।
और तू प्रेम की धार बन ,
मन में ही बहता हुआ  नजर आया।