राममिलण के काज सखी, मेरे आरति उर जागी री।
तड़पत तड़पत कल न पढत है, बिरह-बाण उर लागी री।
निस दिन पंथ निहारूं पीव को, पलक न पल भरि लागी री।
पीव पीव मैं रटूं रात दिन, दूजी सुधि बुधि भागी री।
बिरह-भुवंग मेरो डसो है कलेजो, लहरि हलाहल जागी री।
मेरी आरति मेटि गुसांई, आइ मिलौ मोहिं सागी री।
मीरा ब्याकुल अति अकुलाणी, पिया की उमंग अति लागी री॥ (मीरा बृहत्पदावली, पृ. २६७)
तड़पत तड़पत कल न पढत है, बिरह-बाण उर लागी री।
निस दिन पंथ निहारूं पीव को, पलक न पल भरि लागी री।
पीव पीव मैं रटूं रात दिन, दूजी सुधि बुधि भागी री।
बिरह-भुवंग मेरो डसो है कलेजो, लहरि हलाहल जागी री।
मेरी आरति मेटि गुसांई, आइ मिलौ मोहिं सागी री।
मीरा ब्याकुल अति अकुलाणी, पिया की उमंग अति लागी री॥ (मीरा बृहत्पदावली, पृ. २६७)
भावार्थ : हे सखी, राममिलन की इच्छा (आशा) मेरे मन में जागी है। मैं पल पल तडप रही
हूँ, क्योंकि बिरह का तीर मेरे ह्रदय को चीर गया है। मैं हररोज उनका रास्ता
देखती हूँ और एक पलभर के लिए भी मेरी पलक झपकती नहीं। मैं दिनरात पिया का
नाम रट रही हूँ, इसके कारण मेरी सुधबुध तक नहीं रही। बिरह के भ्रमर ने मेरे
कलेजे को इस तरह डस लिया है की उसका जहर मुझे तडपा रहा है। पियामिलन की आस
के कारण मैं बहुत व्याकुल हूँ।