भजन : सूरदास जी : अनमोल खजाना
सबसो ऊंची प्रेम सगाई
दुर्योधन के मेवा त्याग्यो, साग विदुर घर खाई
जूठे फल शबरी के खाये, बहु विधि स्वाद बताई
राजसूय यज्ञ युधिष्ठिर कीन्हा, तामे जूठ उठाई
जूठे फल शबरी के खाये, बहु विधि स्वाद बताई
राजसूय यज्ञ युधिष्ठिर कीन्हा, तामे जूठ उठाई
प्रेम के बस पारथ रथ हांक्यो, भूल गये ठकुराई
ऐसी प्रीत बढ़ी वृन्दावन, गोपियन नाच नचाई
प्रेम के बस नृप सेवा कीन्हीं,
आप बने हरि नाई सूर क्रूर एहि लायक नाहीं,
केहि लगो करहुं बड़ाई
ऐसी प्रीत बढ़ी वृन्दावन, गोपियन नाच नचाई
प्रेम के बस नृप सेवा कीन्हीं,
आप बने हरि नाई सूर क्रूर एहि लायक नाहीं,
केहि लगो करहुं बड़ाई
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