( I )
गोबिन्द लीन्यो मोल, माई मैं गोबिन्द लीन्यो मोल ।
कोई कहै सस्तो कोई कहै महँगो लीन्यो तराजू तोल ॥
कोई कहै घर में कोई कहै वन में, राधा के संग किलोल ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर आवत प्रेम के मोल ॥
कोई कहै सस्तो कोई कहै महँगो लीन्यो तराजू तोल ॥
कोई कहै घर में कोई कहै वन में, राधा के संग किलोल ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर आवत प्रेम के मोल ॥
( II )
हरि बिन क्यों जिऊँ री माइ ॥
हरि कारण बौरी भई ज्यूँ काठहि घुन खाइ ।
औषद मूल न संचरै, मोहि लाग्यो बौराइ ॥
कमठ दादुर बसत जलमह, जलहि से उपजाइ ।
पल एक जल कौ मीन बिसरै तरपत मर जाइ ॥
हरि ढ़ूँढ़ण गई बन-बन कहुँ मुरली धुन पाइ ।
मीरा के प्रभु लाल गिरधर, मिलि गये सुखदाइ ॥
हरि कारण बौरी भई ज्यूँ काठहि घुन खाइ ।
औषद मूल न संचरै, मोहि लाग्यो बौराइ ॥
कमठ दादुर बसत जलमह, जलहि से उपजाइ ।
पल एक जल कौ मीन बिसरै तरपत मर जाइ ॥
हरि ढ़ूँढ़ण गई बन-बन कहुँ मुरली धुन पाइ ।
मीरा के प्रभु लाल गिरधर, मिलि गये सुखदाइ ॥
( III )
जावो हरि निरमोहिड़ा, जाणी थाँरी प्रीत ॥
लगन लगी जब प्रीत और ही, अब कुछ अवली रीत ।
अम्रित प्याय कै बिष क्यूँ दीजै, कूण गाँव की रीत ।
मीरा कहै प्रभु गिरधनागर, आप गरज के मीत ।
लगन लगी जब प्रीत और ही, अब कुछ अवली रीत ।
अम्रित प्याय कै बिष क्यूँ दीजै, कूण गाँव की रीत ।
मीरा कहै प्रभु गिरधनागर, आप गरज के मीत ।
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