कान्हा, मो से मिलन को आयों,
सावन पंचमी की रात .
मनोहर मूरत , सावली सूरत,
मिटा गयों संताप .
हिव्ड़े से लिपट लिपट कर ,
बोल्या मीठी वाणी .
छल छल नीर बहें नैनन से,
अबहू दरद कोई तन से न लाग्ये,
मिट गयों भय अरु त्रास.
चांदन से धुल रही रैना ,
बुझी नैनन की प्यास .
श्यामरंग, रंग गयी मैं तो ,मिट गयों भय अरु त्रास.
चांदन से धुल रही रैना ,
बुझी नैनन की प्यास .
जग से मोहे क्या काज.
अब काहूँ का ध्यान धरूँ,
जो मिल गयें महाराज .
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