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Friday, July 20, 2012

मिलन : कान्हा के नाम चिट्ठी: चंद्रानी (पिंकी )


कान्हा, मो से मिलन को आयों,
सावन पंचमी की रात .
मनोहर मूरत , सावली सूरत,
मिटा गयों  संताप . 
 हिव्ड़े से लिपट लिपट कर ,
बोल्या मीठी वाणी  .
छल छल  नीर बहें नैनन से,
रोक्या  डगर  म्हारी .
अबहू  दरद कोई  तन से न लाग्ये,
मिट गयों  भय अरु त्रास. 
चांदन से धुल रही रैना ,
बुझी नैनन की प्यास . 

श्यामरंग, रंग गयी मैं  तो ,
जग से मोहे क्या काज.
अब काहूँ का ध्यान  धरूँ,
जो मिल गयें महाराज .



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