कान्हा के नाम चिट्ठी - चंद्रानी पुरकायस्थ
मेरो कान्हा मोहे बांध गयो रे.
सुन्दर नयन , छबि सुन्दर कान्ति,
मीठी मीठी बोलके मोहे छोड़ गयो रे,
संसार की खूटी से बांध गयो रे.
दिखाईके उजली उजली सी दुनिया,
बिकार के सागर में छोड़ गयो रे .
गुड़ के नाम से नीम खिलाई गयो रे.
मेरो कान्हा मोहे बांध गयो रे.
का से कहूँ दर्द जिया की ,
जब श्याम खुद ही पलट गयो रे.
कान्हा कान्हा खोलो ये डोरी ,
तरस रही बहना तेरी,कब से यों खड़ी खड़ी.
ले चल मुझको साथ तिहारे ,
शुनले बिनती मोहन मुरारी.
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