कान्हा रे, तू तो जाने गति मेरे मन की,
झूट के पीछे भागी फिरूं मैं ,
सच से मैं अनजानी .
तू तो जाने गति मेरे मन की,
झूट के पीछे भागी फिरूं मैं ,
सच से मैं अनजानी .
तू तो जाने गति मेरे मन की,
कौन राह तो से मिलाएँ,
कौन बढ़ाये दुरी .
मोड़ पर खड़ी तो को पुकारूँ,
राह दिखा अबिनाशी .
तू तो जाने गति मेरे मन की.
रुत आये रुत जाये ,
पर तेरी खबर न आये.
पल पल तो को पुकारे मनवा ,
दे अब दरश दिखाय.
सूरत तेरी जी भर निहारूं,
कुछ ऐसों कर दे मुरारी .
मैं मुरख अज्ञानी कान्हा ,
तू हैं अंतर्यामी .रंग तोरे रंग दे मोहे,
मन मोहन मनोहारी ,
तू तो जाने गति मेरे मन की.
मैं मुरख अज्ञानी कान्हा ,
तू हैं अंतर्यामी .रंग तोरे रंग दे मोहे,
मन मोहन मनोहारी ,
तू तो जाने गति मेरे मन की.
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