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Tuesday, November 8, 2011

कान्हा के नाम चिट्ठी -तू तो जाने गति मेरे मन की


कान्हा रे, तू तो जाने गति मेरे मन की,
झूट के पीछे भागी फिरूं मैं ,
सच से मैं अनजानी .
तू  तो जाने गति मेरे मन की,
कौन राह  तो से मिलाएँ,
कौन बढ़ाये दुरी .
मोड़ पर खड़ी तो को पुकारूँ,
राह दिखा अबिनाशी .
तू तो जाने गति मेरे मन की.
रुत आये रुत जाये ,
पर तेरी खबर  न आये.
पल पल तो को  पुकारे मनवा ,
दे अब दरश दिखाय.
सूरत तेरी जी भर निहारूं,
कुछ ऐसों  कर दे मुरारी .
मैं मुरख अज्ञानी कान्हा  ,
तू  हैं अंतर्यामी .
रंग तोरे रंग दे मोहे,
मन मोहन मनोहारी ,
तू तो जाने गति मेरे मन की.





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