मैं अकेली थी , अकेली हूँ और सायद अकेली ही रहूंगी।
भीड़ में भी अकेली ।।
भीड़ में भी अकेली ।।
हर अपना, अपने होने का एहसास दिला कर खो जाता है.
मैं सुनी गलियारे में झांकती , सोचती कोई किसी का अपना होकर भी ,
अपना नही ???
तभी तू कानों में मेरे हलके से कह जाता ,
हर पल , हर कदम मैं साथ हूँ तेरे ।
मैं मोर पंख से छन छन आती किरणों में ,
ढूंढ़ लेती तुझे।
तू अपनी आँखों कि भाषा से
हर बात कह जाता ।
मैं अँधेरे से डर जाती ,
तू बाति लेकर राह दिखाता.
हाँ , पता हैं मुझे ,
हर पल तू साथ था, साथ है, साथ रहेगा।
प्रेम क्या है तुने ही तो सिखलाया ,
मैं संसार भर प्रेम ढूँढती रही।
तू बाति लेकर राह दिखाता.
हाँ , पता हैं मुझे ,
हर पल तू साथ था, साथ है, साथ रहेगा।
प्रेम क्या है तुने ही तो सिखलाया ,
मैं संसार भर प्रेम ढूँढती रही।
और तू प्रेम की धार बन ,
मन में ही बहता हुआ नजर आया।
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